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नीच नराधम होने पर भी / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग भैरवी-ताल कहरवा)

 नीच नराधम होने पर भी, मुझको कम न दिया तुमने।
 समझ अयोग्य नहीं फिर कुछ भी मुझसे छीन लिया तुमने॥-१॥
 नहीं शरणमें गया तुहारी, नहीं दयाका बना भिखारी,
 रहा सदा प्रतिकूञ्ल, भुलाया मुझको किन्तु नहीं तुमने।
 दिया दयाका दान, न मुझसे बदला कुछ चाहा तुमने॥-२॥
 भटक रहा भव-‌अटवी में, नित, किन्तु न सोचा क्या होगा हित,
 सुधा त्याग विष-पान रहा रत, तदपि नहीं छोड़ा तुमने।
 करते रहे सँभाल, वहन सब योग-क्षेम किया तुमने॥-३॥
 मुझे बनाकर तुम नित अपना, अपने पास चाहते रखना,
 मैं मायाको नहीं छोड़ता, नहीं तजी परवा तुमने।
 करते रहे सदा प्रयत्न तुम, मुझसे क्या पाया तुमने॥-४॥
 कभी हँसाया, कभी रुलाया, कभी नचाया, कभी सुलाया,
 मीठी-कड़वी औषध दे-दे किया निरोग मुझे तुमने।
 आखिर निज स्वभाववश मुझको बना लिया अपना तुमने॥-५॥