विश्व-वाटिका की प्रति क्यारी में / हनुमानप्रसाद पोद्दार
(धुन लावनी-ताल कहरवा)
विश्व-वाटिका की प्रति क्यारी में क्यों नित फिरता माली!
किसके लिये सुमन चुन-चुनकर सजा रहा सुन्दर डाली॥
क्या तू नहीं देखता इन सुमनोंमें उसका प्यारा रूप।
जिसके लिये विविध विधिसे है हार गूँथता तू अपरूप॥
बीजाङङ्कुर शाखा-उपशाखा, क्यारी-कुञ्ज, लता-पा।
कण-कणमें है भरी हुई उस मोहनकी मधुरी सा॥
कमलोंका कोमल पराग विकसित गुलाबकी यह लाली।
सनी हुई है उससे सारे विश्व-बागकी हरियाली॥
मधुर हास्य उसका ही पाकर खिलतीं नित नव-नव कलियाँ।
उसकी मञ्जु माता पाकर भ्रमर कर रहे रँगरलियाँ॥
पाकर सुस्वर कण्ठ उसीका विहग कूञ्जते चारों ओर।
देख उसीको मेघरूपमें हर्षित होते चातक-मोर॥
हार गूँथकर कहाँ जायगा उसे ढूँढऩे तू माली ?
देख, इन्हीं सुमनोंके अंदर उसकी मूरति मतवाली॥
रूप-रन्ग, सौरभ-परागमें भरा उसीका प्यारा रूप।
जिसके लिये इन्हें चुन-चुनकर हार गूँथता तू अपरूप॥