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ब्राह्मण-श्वपच, देवता-दानव / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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ब्राह्मण-श्वपच, देवता-दानव, मानव-पशु, खग-कीट-पतन्ग।
धनी-दरिद्र, सुशिक्षित-अपठित, नर-नारी, शुभ अन्ग-अनन्ग॥
बृक्ष-लता-गिरि-सरिता-सागर, अनल-अनिल-जल-भू-आकाश।
सबमें सदा पूर्ण हरि हैं, सबमें है उनका एक प्रकाश॥
नाम-रूप-व्यवहार-भिन्नता, पर ताविक न तनिक भी भेद।
है सबमें सुव्याप्त वही सच्चिदानन्द परतव अभेद॥
प्रभुको सबमें, सबको प्रभुमें नित्य देखता जो विद्वान।
वह देखा करता नित प्रभुको, उसे देखते नित भगवान॥