भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ब्राह्मण-श्वपच, देवता-दानव / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:41, 8 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ब्राह्मण-श्वपच, देवता-दानव, मानव-पशु, खग-कीट-पतन्ग।
धनी-दरिद्र, सुशिक्षित-‌अपठित, नर-नारी, शुभ अन्ग-‌अनन्ग॥
बृक्ष-लता-गिरि-सरिता-सागर, अनल-‌अनिल-जल-भू-‌आकाश।
सबमें सदा पूर्ण हरि हैं, सबमें है उनका एक प्रकाश॥
नाम-रूप-व्यवहार-भिन्नता, पर ताविक न तनिक भी भेद।
है सबमें सुव्याप्त वही सच्चिदानन्द परतव अभेद॥
प्रभुको सबमें, सबको प्रभुमें नित्य देखता जो विद्वान।
वह देखा करता नित प्रभुको, उसे देखते नित भगवान॥