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विश्व चराचर में जो छाये / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(राग भीमपलासी-ताल दीपचन्दी)
विश्व चराचर में जो छाये, अखिल विश्वके जो आधार।
सदा सर्वगत, चलता जिनमें अखिल विश्वका सब व्यापार॥
कण-कणमें जो व्याप्त नित्य, हैं अणु-महान जिनका विस्तार।
जिनसे कभी न खाली कुछ भी, सर्वरूप जो, सर्वाकार॥
व्यक्तव्यक्त सभी कुछ वे ही, वे ही निराकार-साकार।
लेते काष्ठ -धातु-पाषाण प्रतीकोंमें अर्चा-अवतार।
उन प्रभुको भज सकते सब ही निज-निज-भाव-सुरुचि-अनुसार॥