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सहज सुहृद, अतिशय हितकारी / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग वागेश्री-ताल कहरवा)
 
सहज सुहृद, अतिशय हितकारी ईश्वर रहते हैं नित साथ।
दिव्य सुखद आश्रय देनेको सदा बढ़ाये रखते हाथ॥
बरसाते रहते नित वे प्रभु शान्ति-सुधा-रसका शुचि मेह।
नित्य दान करते रहते वे अति उदार निज शुचितम स्नेह॥
देखो उनकी ओर, हटा लो उनसे विमुख जगतसे दृष्टि ।
उनके बिना यहाँ है केवल दुःख-ताप, तम-भयकी सृष्टि ॥
समुख हो जा‌ओ तुरंत, लो चरणोंका अनन्य आश्रय।
कर लो सफल जन्म-जीवन, हो जा‌ओ अभी नित्य निर्भय॥