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काम-क्रोध, लोभ-मद-मत्सर-‌ईर्ष्या / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग गौड़-मलार-ताल कहरवा)
 
काम-क्रोध, लोभ-मद-मत्सर-‌ईर्ष्या, असत्‌‌-विषय-‌अभिलाष।
द्वेष-दंभ-हिंसा-‌असत्य-दोषोंका जिससे होता नाश॥
खान-पान-व्यवहार-‌आचरण-सबमें रहती पूरी शुद्धि।
जीवन-लक्ष्य ‘मोक्ष’ में रहती नित्य अविचलित निश्चय बुद्धि॥
अभिनेताकी तरह निपुणता-सहित नियत निज धर्माचार।
पालन होता श्रेय समझ, होता न ग्रहण पर-धर्म-विचार॥
त्याग-‌अहिंसा-सेवा-परहित गुण-प्रसून खिलते अभिराम।
ईशाराधन-भजन नित्य होता अनुराग-सहित निष्काम॥
होता शुभ स्व-कर्मसे भगवत्पूजन सहज सदा अविराम।
शान्ति-सुधा-सरिता लहराती प्लावित कर तटभूमि तमाम॥
आत्मामें सब जीव चराचर, सबमें नित्य आत्मा एक।
दिखता, होता नहीं दूर यह तनिक सुदृढ़ अनुभूत विवेक॥
सबमें दिखते ईश, दीखता ईश्वरमें सारा संसार।
उदय न हो पाता, रह पाता नहीं प्राकृतिक दोष-विकार॥
शुचि अनन्य ममता प्रभु-पदमें, बढ़ती सेवाकी रुचि, चाव।
‘हिंदू-धर्म-सनातन’ का यह पावन रूप शुद्धतम भाव॥