भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नहिं ममता, नहिं कामना / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:41, 9 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग भैरव)
 
नहिं ममता, नहिं कामना, नहीं संग, अभिमान।
बिनय, त्याग भरपूर हिय, सो सेवक मतिमान॥
सेवक सेवा छाँडि कै, चहै न संपति स्वर्ग।
सेवा ही है परम फल, परम धर्म, अपबर्ग॥