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जगमें जो कुछ भी है मिलता / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग श्यामकल्याण-ताल धमार)
 
जगमें जो कुछ भी है मिलता-कीर्ति-‌अकीर्ति, मान-‌अपमान।
धन-दारिद्र्‌य, शुभाशुभ, प्रिय-‌अप्रिय, सुख-दुःख, लाभ-नुकसान॥
जन्म-मृत्यु आरोग्य-रोग, सब ही निश्चित हित-पूर्ण विधान।
रचते मंगल-हेतु ज्ञानमय सुहृद-शिरोमणि श्रीभगवान॥
विश्वासी अति भक्त नित्य संतुष्ट बना रहता यह जान।
हर स्थितिमें पाता वह मंगलमय प्रभुका संस्पर्श महान॥
हर्ष-विषाद-रहित वह रहता, सदा परम आनन्द-निमग्र।
चित-बुद्धि सब रहते उसके नित्य सतत प्रभुमें संलग्र॥
प्रभुका अतिशय प्रिय वह होता, परम दिव्य समता-सपन्न।
होता उसके उरमें प्रभुका नित्य नवीन प्रेम उत्पन्न॥
एकमात्र प्रभुमें होती उसकी अनन्य ममता एकान्त।
हो जाता दुर्लभ फिर उसका परम भागवत-जीवन शान्त॥