भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मानव-जीवन मूल्यवान यह बीता / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:27, 12 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग शिवरञ्जनी-ताल कहरवा)
 
मानव-जीवन मूल्यवान यह बीता चला जा रहा व्यर्थ।
‘परम-‌अर्थ’ प्रभुको कर विस्मृत, संग्रह हम कर रहे अनर्थ॥
प्रभुका चिन्तन छोड़, रात-दिन करते हम भोगोंकी याद।
बढ़ती भोगासक्ति दिनोंदिन, बढ़ते भय-भ्रम, शोक-विषाद॥
सत्पथ त्याग, इसीसे चलते हम कुमार्गपर भर उत्साह।
नये-नये पापोंका संचय होता, बढ़ता नित उर-दाह॥
पता नहीं, क्या-कैसा होगा इसका दुस्सह दुष्परिणाम।
इससे बचनेका उपाय है एकमात्र-’भजना श्रीराम’॥