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मानव-जीवन मूल्यवान यह बीता / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(राग शिवरञ्जनी-ताल कहरवा)
मानव-जीवन मूल्यवान यह बीता चला जा रहा व्यर्थ।
‘परम-अर्थ’ प्रभुको कर विस्मृत, संग्रह हम कर रहे अनर्थ॥
प्रभुका चिन्तन छोड़, रात-दिन करते हम भोगोंकी याद।
बढ़ती भोगासक्ति दिनोंदिन, बढ़ते भय-भ्रम, शोक-विषाद॥
सत्पथ त्याग, इसीसे चलते हम कुमार्गपर भर उत्साह।
नये-नये पापोंका संचय होता, बढ़ता नित उर-दाह॥
पता नहीं, क्या-कैसा होगा इसका दुस्सह दुष्परिणाम।
इससे बचनेका उपाय है एकमात्र-’भजना श्रीराम’॥