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बिकाऊ / भास्कर चौधुरी

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दूर आसमान में
जितनी गहरी हो रही है रात
धरती पर उतनी ही तेजी से
बिक रही है चीज़ें...
(कहते हैं उजाला फैल रहा है
अच्छे दिन आ रहे हैं )
 
मुस्कुराहटें बिक रही है
बिक रही है हँसी
टपक पड़े आँसू
तो वह भी बिकाऊ है
 
पर नई चीज़ है
मन का बिकाउ हो जाना!!