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अहमक / सुलोचना वर्मा
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तमीज़ की कमीज़ के बटन का काज़ उधेरकर
औरों से शिकायतमंद है कि उन्हें सीना नही आता
लोगों की आदतपरस्ती के एहसास में ज़ुल्म ढा रहा है
और बयान दूसरों को, कि उन्हे जीना नही आता
दोस्ती की आड़ में, जिंदगी की राह पर
पाप इतने किए हैं के अब गिना नही जाता
यूँ तो मशवरा बहुतों ने दिया है उसे, लेकिन
अहमक दिमाग़ को इल्म ठोकरों के बिना नही आता
एक अरसे से हज को रुखसत हुआ है
चला ही जा रहा है, पर मदीना नही आता