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संविधान के ठेकेदारों से / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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संविधान के ठेकेदारो! तनिक होश में आओ।
चौतरफा जो आग लगी है पहले उसे बुझाओ॥

लोकतंत्र बलहीन हुआ, ख़तरे में है आज़ादी,
सर्वनाश पर तुले हुए हैं मिल का कुछ उन्मादी,
अखण्डता की तरणी को है तूफानों ने घेरा,
क्रूर दृष्टि से झाँक रही है निकट खड़ी बर्बादी,

तार-तार होने से माँ का
आँचल आज बचाओ।
चौतरफा जो आग लगी है
पहले उसे बुझाओ॥

कुछ की नहीं, सभी की अपनी है यह भारत माता,
एक समान सभी का उससे माँ-बेटे का नाता,
पले गोद में उसकी जो वह सब हैं भाई-भाई,
सब मिल सेवा करें हमारा फ़र्ज़ यही सिखलाता,

देकर तन-मन प्राण सभी कुछ
माँ का कर्ज चुकाओ।
चौतरफा जो आग लगी है
पहले उसे बुझाओ॥

झड़ते जाएँ फूल अगर तो सूनी होती डाली,
पतझर का आक्रमण देख कर चिन्तित होता माली,
हाल बुरा है अपना तो, प्रहरी बटमार बने हैं-
बाड़ खेत को खुद खाये तो कौन करे रखवाली?

पद-लोलुपता की दलदल में
मन को नहीं फँसाओ।
चौतरफा जो आग लगी है
पहले उसे बुझाओ॥

सत्ता के मद में मत फूलों, सोचो प्रण की बातें,
अमल करो उन पर जो की थी दैन्य हरण की बातें
मुख्य बात को कभी न भूलो आपस के झगड़ों में,
घर की सब आपसी गौण हैं आरक्षण की बातें,

अपने ही लोहू को मत
सड़कों पर आज बहाओ।
चौतरफा जो आग लगी है
पहले उसे बुझाओ॥