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गरिमा गान / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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आज अंधेरी रात प्रात से भी उजली है,
आर्य जगत् को जिसने नव आलोक दिया है।
जीर्ण-शीर्ण जर्जर समाज के मृत शरीर को,
अनुप्राणित कर नवजीवन का संचार किया है॥
है स्वर्णिम इतिहास निहित इस स्वर्ण निशा में,
नए ज्ञान का उदित नया दिनमान हुआ था।
चीर प्रबल अज्ञान तिमिर के अंतराल को,
भारत वसुधा पर जब नया विहान हुआ था॥
जाग उठा था सुप्त भाग्य उस दिन स्वदेश का,
नेत्र खोल कर ली समाज ने थी अंगड़ाई।
नई प्रेरणा लेकर जब ऋषि दयानन्द ने,
पुण्य भूमि पर अमर सत्य की ज्योति जलाई॥
घर-घर में फेला प्रकाश वैदिक विवेक का,
खण्ड-खण्ड पाखण्ड पहाड़ों को कर डाला।
नीर-क्षीर विलगाने की क्षमता दिखला कर
मन्थन कर निगमागम का शुचि सार निकाला॥
सत्य अर्थ कर प्रकट असत् आमूल मिटाकर,
गागर में सागर भरने की कला दिखा दी।
भूले-भटके अविवेकी संतप्त जनों को,
सब रहस्य जतला कर सच्ची राह बता दी॥
वीर तपस्वी था भारत का एक अनोखा,
था अदम्य साहस उर में, वाणी में बल था।
अचल हिमालय सा निज पथ से हुआ न विचलित,
सच्चा साधक, सत्यव्रती, निर्भय निश्छल था॥
भू पर जब तक गंगा-जमुना धार बहेंगी,
नभ में ज्योति रहेगी जब तक सूर्य-चंद्र की।
फहरायेगी तब तक निश्चय अखिल विश्व में,
सुयश पताका वंदनीय ऋषि दयानन्द की॥