भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निराशा मृत्यु है जीवन नहीं है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:24, 17 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महावीर प्रसाद 'मधुप' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निराशा मृत्यु है जीवन नहीं है
दनुजता ध्वंस है, सर्जन नहीं है

बनो तो पात्र श्रद्धा के बनो तुम
दया तो दान है, वन्दन नहीं है

न हो आराध्य को यदि मन समर्पित
वो केवल ढोंग है, पूजन नहीं है

किसी मजलूम आँसू से न खेलो
वो शोला है, अरे! चन्दन नहीं है

किसी को देखकर रोता, हँसो मत
ये मजबूरी है, पागलपन नहीं है

न समझो दिल्लगी, दिल लगी को
ये तपता जेठ है, सावन नहीं है

चमक उट्ठे न तपकर आग में जो
वो लोहा है, खरा कुन्दन नहीं है

विहँस कर संकटों से जो न खेले
बुढ़ापा है, सबल यौवन नहीं है

मिलें मन भी नहीं जो साथ तन के
रसम है, प्यार का बन्धन नहीं है

‘मधुप’ कहता ग़ज़ल जिसको ज़माना
वो दिल का दर्द है, गंुजन नहीं है