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बानी में सबद की चोट उठै / संजय चतुर्वेद

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कविता घुमड़ै भवसिंधु मथै जल में जलजान रहै न रहै
सम्मान रहै मनमन्दिर में सर पै भगवान रहै न रहै
इन्सान रहै तहज़ीब रहै शातिर ईमान रहै न रहै
हाथन में कोऊ काम रहै पोथी में ज्ञान रहै न रहै
बकवास रहै आभास रहै तिकड़म अभियान रहै न रहै
उतपात रहै प्रतिबाद रहै गुनगान दुकान रहै न रहै
सुर के आगे मैदान रहै पुर में श्रीमान रहै न रहै
बानी में सबद की चोट उठै काया में पिरान रहै न रहै ।