भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यहाँ नातवाँ मन है / संजय चतुर्वेद

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:52, 17 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेद |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

व्यंग्य शब्द विद्रोह मनन है,
घुमड़ै धुआँ हवा से पूछै मेरा कहाँ वतन है
कोई कहीं आवाज़ दे रहा तिर्यक ताप जलन है
बियाबान निर्वेद पुकारै यहाँ नातवाँ मन है
निर्गुन कितै बिसँगत बूझै सगुन बिराट सघन है
सुरत-निरत अटपट विचार सब परेशान जीवन है
धुक-धुक चक्की चलै जगत की कुण्ठा-तप ईंधन है ।