भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुनिया, माँ रै पाछै चालै / कुंदन माली

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:13, 20 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंदन माली |संग्रह=जग रो लेखो / कुं...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आवतां-जावतां
म्हारै मन में
अेक ईज बात रैवै

जे आ धरती
आप री तमाम
निपज रो मोल
मांगणो सरू कर देवै
तो पछै धरती रो सरूप
किस्यो व्है जावैला ?

बेटो बाप री गैल चालै
आ तो ठीक है

पण मां, बेटा सूं
सीखणी सरू कर देवै
बो दिन कदास
भगवान पण नीं
देखणौ चावैला ?