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सुर न सजे क्या गाऊँ मैं / शैलेन्द्र

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सुर न सजे क्या गाऊँ मैं

सुर के बिना जीवन सूना


दोनों जहाँ मुझ से रूठे

तेरे बिना ये गीत भी झूठे

जलता गया जीवन मेरा

इस रात का न होगा सवेरा


संगीत मन को पंख लगाए

गीतों से रिमझिम बरसाए

स्वर की साधना परमेश्वर की !