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अब के बरस भेज भईया को बाबुल / शैलेन्द्र

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अब के बरस भेज भईया को बाबुल सावन में लीजो बुलाय रे !

लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियाँ दीजो संदेशा पठाय रे !


बैरन जवानी ने छीने खिलौने और मेरी गुड़िया चुराई

बाबुल मैं थी तेरे नाज़ों की पाली फिर क्यों हुई मैं पराई

बीते रे जुग कोई चिठिया न पाती, न कोई नैहर से आए रे !


अम्बुवा तले फिर से झूले पड़ेंगे रिमझिम पड़ेंगी फुहारें

लौटेंगी फिर तेरे आंगन में बाबुल सावन की ठंडी बहारें

छलके नयन मोरा, कसके रे जियरा, बचपन की जब याद आए रे !