भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूतलि छलहुँ हम एकसरि सजनी गे / मैथिली लोकगीत
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:53, 1 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मैथिली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=ऋतू ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सूतलि छलहुँ हम एकसरि सजनी गे
निन्दमे उठल चेहाय सजनी गे
सपनामे देखल पहु आयल सजनी गे
तखने टुटल मोर निन्द सजनी गे
देखल कहाँ पहु मोर सजनी गे
ककरा कहब बुझाइ सजनी गे
के कहत मोर दिल के बतिया
के मोहि करत दुलार सजनी गे
हमर अभाग केहन थिक सजनी गे
हुनकहि किए देब दोख सजनी गे
भनहि विद्यापति सुनू सजनी गे
स्वप्नक नहि बिसबास सजनी गे