भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाहि बाटे हरि गेला / मैथिली लोकगीत

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:22, 1 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मैथिली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=ऋतू ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जाहि बाटे हरि गेला, दुभिया जनमि गेल
कि आहे ऊधो, दुभिया जनमिते बिजुवन लागल रे की
अपनो ने आबथि हरि, लिखियो ने भेजथि पांती
कि आहे ऊधो, बटिया जोहैते छतिया फाटल रे की
जँ नहि अओताह हरि, मरब जहर घोरि
कि आहे ऊधो, मरब जहर-बिख पान रे की
एक तऽ हम बारि कुमारी, दोसर हरि के प्यारी
कि आहो रामा, भंगिया घोटैते मोर मन ऊबल रे की
एक तऽ राजा के बेटी, संग मलिनियां चेरी
कि आहो रामा, दिन भरि बेलपात कोना तोड़ब रे की
फूल लोढ़ऽ गेलौं बाड़ी, अंचरा लटकलै ठाढ़ी
कि आहो रामा, शिव बिनु अंचरा के उतारत रे की
चहुँ दिस ताकथि गौरी, कतहु ने देखथि जोगी
कि आहो रामा, कतहु ने सुनिऐ डमरू बाजन रे की
बसहा चढ़ल आबथि, नाथ दिगम्बर मोर
कि आहो रामा, शिव के देखैते अंचरा छूटल रे की