भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चलू सखि पुरय हकार हे / मैथिली लोकगीत
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:06, 2 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मैथिली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=विवि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
चलू सखि पूरय हकार हे, जनक जी के अंगना
होइ छनि चतुर्थी आजु हे, जनक जी के अंगना
हीरा जड़ाओल पालो राखल, ताहि पर सिया सुकुमारि हे
जनक जी के अंगना
सखि सभ मंगल गाओल, कलश भरि जल देल ढ़ारि हे
जनक जी के अंगना
मुसुकि-मुसुकि राम नहाथि, कि सखि सभ पढ़थि गारि हे
जनक जी के अंगना
पहिरि-ओढ़िय दुलहा अंगनामे ठाढ़, कि सासु के करथि प्रणाम
जनक जी के अंगना