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खिल उठा फूल सा बदन उसका / ‘अना’ क़ासमी
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वीरेन्द्र खरे अकेला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:43, 2 जुलाई 2014 का अवतरण
खिल उठा फूल सा बदन उसका
उफ़ वो बारीक पैरहन उसका
लाल-ओ-गुल<ref> फूल-फुलवारी</ref>तमाम अपने है
मानता हूँ के है चमन उसका
दिल के बेआब तपते सहरा में
सर्द झोंका है बांकपन उसका
ख़ुशबुएँ घोलता है लहज़े में
पंखड़ी-पंखड़ी दहन उसका
ये जो अशअ़ार हैं उसी के हैं
मेरा लहजा है सारा फ़न उसका
जुफ़्त<ref>सम संख्या</ref> वो था में ताक़<ref>विसम संख्या</ref> बन के रहा
एक सन मेरा एक सन उसका
एक चादर है कुल मताए फ़कीर
वो ही बिस्तर वही क़फ़न उसका
शब्दार्थ
<references/>