भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुलेखा जी का शृंगार / शुभम श्री
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:07, 4 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शुभम श्री |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आठो अंग बारहो अभरण
छमछम चूड़ी झमझम पायल
लट छिलकी, लिपिस्टिक लाल
जरी के काम की समीज सलवार
सुलेखा जी विभाग में प्रवेश करती हैं
धक् से रह जाता है रामसरोज का हृदय
भ्रातृभाव से भर उठते हैं अन्नू भैया
(पिछले हफ़्ते प्रेमपत्र अस्वीकार होने पर भैया हुए हैं)
चातक हो रहा है बजरंगी
विकल हैं रमेस सुरेस राकेस
पानी ला रहा है दिनेस
नोट्स लिख रहा है तरुनेस
समोसा खा रही मुग्धा नायिका सुलेखा सुकुमारी
चला रही है भावी सुकुलों पर कटारी