भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अेक सौ सोळै / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:19, 4 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद कुमार शर्मा |संग्रह=कारो / ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सातूं सिंझ्या रो टैम
म्हैं थानां मांय अरपूं सबद
-सुणै दीयो
होळै-होळै प्राण लेवै प्राण भराव
उघड़ै अेक औंकार रो सभाव
अबै रात-भर जागणो है
अर जगाणो है अलाव
-गुणै हीयो
सातूं सिंझ्या रो टैम
-सुणै दीयो।