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तीलियाँ / अंजू शर्मा
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रहना ही होता है हमें
अनचाहे भी कुछ लोगों के साथ,
जैसे माचिस की डिबिया में रहती हैं
तीलियाँ सटी हुई एक दूसरे के साथ,
प्रत्यक्षतः शांत
और गंभीर
एक दूसरे से चुराते नज़रें पर
देखते हुए हजारो-हज़ार आँखों से,
तलाश में बस एक रगड़ की
और बदल जाने को आतुर एक दावानल में,
भूल जाते हैं कि
तीलियों का धर्म होता है सुलगाना,
चूल्हा या किसी का घर,
खुद कहाँ जानती हैं तीलियाँ,
होती हैं स्वयं में एक सुसुप्त ज्वालामुखी
हरेक तीली,
कब मिलता है अधिकार उन्हें
चुनने का अपना भविष्य
कभी कोई तीली बदलती है पवित्र अग्नि में तो
कोई बदल जाती है लेडी मेकबेथ में...