भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चेतावनी / अंजू शर्मा
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:07, 4 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंजू शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=कल्प...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सुनो
कि मेरा मौन एक चीत्कार है
यह डेसिबल की वह अंतिम सीमा है
जहाँ शांति के आदी तुम्हारे कान
कांपते हुए थामते हैं श्वेत ध्वज,
मेरे मौन के पांवों ने उतार फेंकी है
रुपहली झाँझरें,
उसके पांव तले दम तोड़ रही हैं
वे तमाम पोथियाँ
जो पनाहगाह थी
सभी 'दिव्य' वाक्यों की,
जो धकेलते रहे हैं हमें
जबरन हाशिये की ओर,
एक पैर पर सधा मेरा मौन
हाशिये से अब निशाना
साध रहा है केंद्र की ओर
सावधान प्रतिपक्ष...