भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आत्मदीप / मंजुश्री गुप्ता
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:12, 4 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंजुश्री गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
काली अंधियारी रात
भयंकर झंझावात !
वर्ष घनघोर प्रलयंकर
पूछती हूँ प्रश्न मैं घबराकर
है छुपा कहाँ आशा दिनकर?
मन ही कहता
क्यूँ भटके तू इधर उधर?
खुद तुझसे ही है आस किरन
तुझ जैसे होंगे कई भयभीत कातर
कर प्रज्ज्वलित पथ
स्वयं ही दीप बन !