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औपचारिक / सीमा 'असीम' सक्सेना

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इतनी औपचारिक
इतनी बेरूखी
तुम कैसे कर सकती हो
तुम तो प्यार करती हो
हाँ सच कहा
मैं ही तो करती हूँ
तुमसे प्यार
तुम्हारा इंतजार
तुम्हारी हर गलती को
माफ करते हुए
तुम्हारी अपेक्षाओं
पर भी नाराज ना होते हुए
और तुम करते हो
मेरा उपयोग
तभी तो लाद देते हो
गहनों के बोझ तले,
तुम्हें चूड़ियों की खनकार
पायलों की झनकार लुभाती है
और मुझे बनाती है
हथकड़ी बेड़ी के सामान लाचार
मेरे काले लम्बे घने बालों से खेलते हुए
कजरारे नैनों की गहराइयों में उतर जाते हो
तो मैं शरमा सकुचा जाती हूं
तो उन्हीं पलों में
डाल देते हो भार
एक अनचाही संतान का!!