Last modified on 4 जुलाई 2014, at 20:51

कथी लए एलै सखि अगहन महीनमा / मैथिली लोकगीत

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:51, 4 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मैथिली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= बिय...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कथी लए एलै सखि अगहन महीनमा, कथी लए भेलै नरव सारी धनमा
बेटी लए जे एलै अगहन महीनमा, जमाय लेल कूटब नव सारी धनमा
एहि बेरक गौना नहि मानव यौ बाबा, खाय दीअ नवकुटी भात
एक बेर फेरलौं बेटी दुइ बेर फेरलौं, तेसर बेर नटुआ जमाय
खोलि लैह आहे बेटी गाय-महीसिया, आमा सांठथि पौती पेटार
एते दिन छलौं बाबा अहीं रे हवेलिया, आइ किएकरै छी विदाइ
भनहि विद्यापति सुनू हे बेटी, सभ धीया सासुर जाइ