भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भाजी टोरे बर खेत-खार "औ" बियारा जाये / कोदूराम दलित

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:52, 8 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कोदूराम दलित |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} {{KKCatChhatt...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धान-कोदी, राहेर, जुवारी-जोंधरी कपसा
तिली, सन-वन बोए जाथे इही ॠतु-मां ।
बतर-बियासी अउ निंदई-कोड़ई कर,
बनिहार मन बनी पाथें इही ॠतु मां ।।

हरेली, नाग पंचमी, राखी, आठे, तीजा-पोरा
गनेस-बिहार, सब आथें इही ॠतु मां ।
गाय-गोरु मन धरसा-मां जाके हरियर,
हरियर चारा बने खायें इही ॠतु मां ।।