भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी पींघ तले री लांडा मोर / हरियाणवी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:53, 9 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=हरियाणवी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=सा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी पींघ तले री लांडा मोर
रे बीरा बारी बारी जां
मैं तो लाऊंगी मेरे बीरै के हाथ
रे बीरा बारी बारी जां

मीट्ठी तो कर दे री मोस्सी कोथली, सामण री आया गूंजता
जाऊंगी री मेरी बेब्बे के देस, सामण री आया गूंजता
किसीयां के दुख में बेब्बे दूबली
किसीयां नै बोल्ले सैं बोल, सामण री आया गूंजता
सासड़ के दुःख में बीरा दूबली
नणदी नै बोले सैं बोल, सामण री आया गूंजता
नणदी ने भेजांगे बेब्बे सासरै
सासू नै चक लगा राम, सामण री आया गूंजता