भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सिया खड़ी पछताय कुस बन में हुए / हरियाणवी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:57, 9 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=हरियाणवी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=जन...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सिया खड़ी पछताय कुस बन में हुए
जो यहां होती ललना की दाई
ललना देती जमाय सूरज देती पजाय
मुन्ना लेती खिलाए। कुस बन में हुए।।
जो यहां होती ललना की नायन
मंगल देती गवाय चौक देती पुराय
न्हान देती नहलाय। कुस बन में हुए।।
जो यहां होती ललना की दादी
चरुए देती धराय, खुसियां लेती मनाय
बाजे देती बजवाय। कुस बन में हुए।।
जो यहां होती ललना की चाची
पलंगा देती बिछाय दीपक देती जलाय
घुट्टी देती बनाय। कुस बन में हुए।।
जो यहां होती ललना की ताई
ललना लेती खिलाय मोहरें देती लुटाए
नेग देती दिलाय। कुस बन में हुए।।
जो यहां होती ललना की बुआ
सतिये देती धराय काजल देती लगाय
दूध देती पिलवाय। कुस बन में हुए।।