Last modified on 10 जुलाई 2014, at 11:46

विप्र वेशधारी वैश्वानर आये / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:46, 10 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

विप्रवेशधारी वैश्वानर आये प्रभुके पास।
विनय-विनम्र बचन बोले मुखपर छाया मृदु हास॥

“नाथ! आपकी लीला अब लायेगी नूतन रंग।
सीता-हरण करेगा रावण खूब मचेगा जंग॥

अतः जगज्जननी सीता की सेवा का सब भार।
मुझे सौंप इन छाया-सीता को करिये स्वीकार॥

लीला-बध जब कर रावण का कर देंगे उद्धार।
तब मैं इन्हें सौंप दूँगा सादर लाकर सरकार”॥

दुःख हु‌आ यद्यपि प्रभु को ली बात किंतु यह मान।
हु‌आ नहीं लक्ष्मण को भी इस गुप्त भेद का ज्ञान॥