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म्हारे आंगण कीचड़ा / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
म्हारे आंगण कीचड़ा
बे किन डोल्या पाणी
म्हारी हथलाड्डो नहाई बे
नाण डोल्या पाणी
आया सामजी ढै पड्या बे
उन की टांग निताणी
टांग निताणी के करै बे
गोडे पडग्या पाणी
पड़ी ए पड़ी ललकारे बे
जनूं दल्लो राणी
मोरी म्हं को लीक्ड्या बे
जणूं सामण का पाणी
धम्मड़ धम्मड़ कूटी बे
जणूं धान्नां की घाणी