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सम्बन्धों के हवामहल / त्रिलोचन
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कल तुम्हें
जिन्होंने बुलाया था
क्या वहाँ
तुमने कुछ पाया था
या केवल चाहते थे
- कान वे
शब्द शब्द शब्द रहे
- दान वे
जी अलग तुम्हारा
अकुलाया था ।
अनचाहे ये ऎसा
- मिल जाना
सुलझाना फिर फिर
- ताना-बाना
क्या तुम्हें
कभी रास आया था ।
ये सब सम्बन्धों के
- हवामहल
रचते हों कितनी भी
- चहल-पहल
पूछो अपने मन से
अपना कुछ लाया था ।