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चुनाव के दिन / त्रिलोचन
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इलायची में बसा हुआ रूमाल लगाया
आँखों पर कि बह चले आँसू; और साथ ही
नाम किसान मजूर का लिया, और हाथ ही
नया दिखाया नेता ने, स्वर नया जगाया
उसी पुराने गले से, चकित थे सब श्रोता
कैसे शेर बन गया बिल्ली, कौन बात थी ।
आज नहीं कुछ दिन पहले किसकी बिसात थी
इससे बातें करता, समय नहीं है, होता
बना बनाया उत्तर, और काम पड़ने पर
बोला करती थी उसकी ओर से गोलियाँ
बिछ जाती थीं एक दो नहीं कई टोलियाँ
आज चिरौरी करता है घोड़ा अड़ने पर
ये चुनाव के दिन हैं नाटक और तमाशे
नए नए होंगे, ठनकेंगे ढोलक, ताशे ।