भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोई सात जणी पाणी जायं री / हरियाणवी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:21, 13 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=हरियाणवी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=पन...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कोई सात जणी पाणी जायं री कोई कुएं रही मंडलाए
री मनै बदो महीनो फागण को
एरी एरी कोई अगली के कांटो लागियो
फिर सातों रही मंडराए री मनै बदो महीनो फागण को
एरी एरी कैं तैरो कांटो काढियो कैं तेरो पकड़ो पांय
री मनै बदो महीनो फागण को
एरी एरी कोई नाई का ने कांटो काढियो मेरा देवर पकड़ो पांय
री मनै बदो महीनो फागण को
एरी एरी कोई नाई का ने देसो परगनो कोई देवर बहण ब्याह
री मनै बदो महीनो फागण को