भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आरर-डाल / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:21, 5 जनवरी 2008 का अवतरण
सचमुच, इधर तुम्हारी याद तो नहीं आई,
- झूठ क्या कहूँ । पूरे दिन मशीन पर खटना,
बासे पर आकर पड़ जाना और कमाई
- का हिसाब जोड़ना, बराबर चित्त उचटना ।
इस उस पर मन दौड़ाना । फिर उठ कर रोटी
- करना । कभी नमक से कभी साग से खाना ।
आरर डाल नौकरी है । यह बिल्कुल खोटी
- है । इसका कुछ ठीक नहीं है आना-जाना ।
आए दिन की बात है । वहाँ टोटा-टोटा
- छोड़ और क्या था । किस दिन क्या बेचा-कीना ।
कमी अपार कमी का ही था अपना कोटा,
- नित्य कुँआ खोदना तब कहीं पानी पीना ।
- धीरज धरो आज कल करते तब आऊँगा,
- जब देखूंगा अपने पुर कुछ कर पाऊंगा ।