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टोकणी पीतल की रे / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
टोकणी पीतल की रे रोहतक तै मोल मंगाई
ईठवां जाली का मैंने उसपै दोगढ़ जचाई
छेल तराइये ओ तेरी हूर लरजदी आई
घर ने मत आइए तेरा आ रा सुभे सिंघ भाई
इतनी सी सुन कै हो सासड़ ने नणद दौड़ाई
पाणी के म्हारे रिते पड़े तेरा मरियो सुबेसिंघ भाई
नणद चाली गाल मत दे सूबेसिंघ की के लगै सै लुगाई