भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नमो नरंजन मात भवानी / हरियाणवी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:46, 13 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=हरियाणवी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=दे...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नमो नरंजन मात भवानी, सदा रंगीला तेरा भवन
तेरे दरस को रिसी मुनि आए, दूर-दूर तै करके गवन
कोए समरधा लावै समाधी, कोए समरधा साधै पवन
तेरे दरस को...
ग्यान बूझ की तैं मेरी जवाला, तेरै बरोबर और न कोए
सुख संपत की तैं मेरी देवै, तेरै बरोबर और ना कोए
सेवत राम तरा जस गावै, हाथ जोड़ कै कर गवन
तेरे दरस को...