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लम्बी नाड़ लटकमा चोटी / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
लम्बी नाड़ लटकमा चोटी साफा बान्धै मेरा राजा हे
पट्ठे बाह्वै तेल रमावै सोकण तै बतलावै हे
सांझ पड़े महलों में आवै बिजली सी वे पाटे हे
उठ सवेरे चाकी झो देई कुएं में पड़न की ध्या लेई हे
पीस-छाण दोघड़ धर लई हम पानी भर लावां हे
पहले तो बहू रोटी खाले फिर पानी भर लाइयो हे
तुम खावो थारा बेटा खुआओ मेरी सासू हे
दोघड़ मेली घाट में फेर चारों तरफ लखाई ए
नार गम्म गम्म कूवे मैं जान टका सी खो देई ए
सासू भी रोवै सुसरा भी रोवै बलमा नै रुधन मचा दिया हे
सासू तो मेरी ये दुख देखे मने रे पीसना दे गई रे
सुसरा तो मेरा ये दुख रोवै बालक बोहड़िया मर गई रे
बलमा तो मेरा ये दुख रोवै मेरी बैटरी बुझ गई रे