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जैपर जाइओ जी ढोला / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
जैपर जाइओ जी ढोला
हम नै बंद बंगड़ी का चा
कौण निरखैगा हे गोरी
तेरा पिआ बसै परदेस
चिट्ठी लिख भेजूं जी ढोला
थम तो सांझ पड़ी घर आओ
किस बिध आऊं हे गोरी
मेरी मायड़ कै चढ़ रह्या ताप
क्यूं ब्याही थी जी ढोला
मेरा ब्याह कै मार्या मान
न्यूं ब्याही थी ए गोरी
मेरा घर का करिओ काम
आग लगाद्यूं जी ढोला
थम तो खड्या तमासा देखिओ जी
इसी मत करिओ रे गोरी
मेरी सात फेरयां की नार
ना मर जइयो हे गोरी
तेरे बिना तज द्यूं सारा संसार
इब समझे ओ जी ढोला
थारा घर बसाऊं दिन रात