भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वहाँ आज कीचड़ / प्रेमशंकर शुक्ल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:41, 15 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जहाँ पानी का जलसा होता था
वहाँ आज कीचड़ हँसता है

इतना सूख गई है
झील
कि झील का ‘झ' झुलसा हुआ दिखता है !
‘ई' पपडि़याई हुई !!
‘ल' की लाज भर के लिए
केवल अब पानी है !!!