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सोन दाइ / कालीकान्त झा ‘बूच’
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रहतौ ने हास, बहि जेतौ विलास गय,
दुई दिवसक जिनगी सँ हेवेॅ निराश गय
भरमक तरंग बीच मृगतृष्णा जागल छौ,
मोहक उमंग बीच, प्राण किएक पागल छौ,
चलि जेतौ सुनेॅ कंठ लागल पियास गय
वाल वृन्द जा रहला, नव - नव युवको चलला,
बूढ़ - सूढ़ जरि - मरि कऽ माटि तऽर परि गलला,
तैयो छौ अपना पर व्यर्थ विश्वास गय
अपना केॅ चीन्हे तोॅ नाम तोहर "सोन दाइ"
टलहा सँ मेझर भऽ मूॅह छौ मलीन आइ
देश कोश विसरि - काटि रहलेॅ प्रवास गय
नेनपन चलि भागलि आब इतिवस्था एतौ,
कहेॅ कनेक गुनि धुनि कऽ तकर बाद की हेतौ,
कहिया धरि कऽ सकबेॅ पर घर मे वास गय