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तूतनख़ामेन के लिए-3 / सुधीर सक्सेना
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सदियों ख़ामोश बहती रही
नील नदी
सदियों बाद
दस्तक दी बेलचों और फावड़ों ने
सदियों बाद
अनावृत किया मजूरों ने
सुनहरा स्वप्नलोक तूतनखामेन का
सदियों पहले
न जागने को सोया था
तूतनखामेन
सदियों बाद
मक़बरे को रौंदा
इन्सानी क़दमों ने
सदियों बाद
हज़ारों की मौजूदगी में
जागा नहीं,
एक बार फिर मरा
पहले से मृत
अभागा तूतनखामेन ।