भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याद एक पल की / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:06, 20 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=गीत वि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अमृत की बूँद हुई याद एक पल की
याद एक पल की ।

तिनके-सी तैर गई तन्हाई
दर्द के समुन्दर से
खारी तट ने माँगी उतराई
भारी-भारी स्वर से
अधरों ने सौंपी धुन शरबती ग़ज़ल की ।

धुँधली तस्वीरों को पोंछ दिया
सन्तरी सवेरे ने
पर्वती गुहाओं में दम तोड़ा
अजगरी अन्धेरे ने
ख़ामोशी चीर गई आरती कमल की ।

थकन भरे सपनों के सिरहाने
चन्दनी हवा उतरी
प्यास के सिवाने पर ढुलक गई
ऋतुओं की रस-गगरी
पोर-पोर भीज गई चुनरी हियतल की ।