भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जंगल / शिवकुटी लाल वर्मा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:50, 21 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवकुटी लाल वर्मा |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक खूँख़ार तेन्दुआ मोटर की बू-वास पा गया
एक विशाल बरगद बुलडोजर से मात खा गया
झाड़ियों ने पत्तियों की ओढ़नी उतार फेंकी
माधवी और विष्णुकान्ता की लताओं ने
स्कर्ट पहन चकर-मकर ताका
फूलों के गहने पहने गमलों से लव किया
साँपों ने मिटटी की हण्डिया स्वीकारी
शाही उद्यानों के भी हो गए पौ-बारह
केले के गांछों ने फ़ोन पर बातें कीं
दलदल भरी धरती ने कुंजों से टाटा की
असभ्यता से पीड़ित वह पहले कभी था जंगल
अहो भाग्य ! दोस्त बना शहर, हुआ जंगल में मंगल