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उयि का जानिन हम को आहिन? / पढ़ीस

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दुनिया के अन्नु देवय्या हम,
सुख - सम्पति के भरवय्या हम
भूखे - नंगे अधमरे परे
रकतन के आँसू रोयि रहे
हमका द्याखति अण्टा<ref>भवन की ऊँची छत, अटारी</ref> चढ़िगे
उयि का जानिनि हम को आहिन॥
ज्याठ की दुपहरी, भादउँ बर-
खा, माह कि पाला पथरन मा
हम कलपि-कलपि अउ सिकुरि-सिकुरि
फिर ठिठुरि-ठिठुरि कयि जिउ देयी;
ठाकुर सरपट - सों कयिगे,
उयि का जानिनि हम को आहिन॥
मोटर मा अयिठीं बिसमिल्ला,
दुइ-चारि सफरदा सोहदा लयि
जामा पहिंदे बेसरमी का
खुद कूचवान सरकार बने
पंछी पँड़ुखी मारिनि - खायिनि
उयि का जानिनि हम को आहिन!
हम कुछु आहिन उयि जानयिं तउ
उहु नातु पुरातन<ref>पुराना, प्राचीन</ref> मानयिं तउ!
उयि रहिहयिं तउ हम हूँ रहिबयि
हम ते उनहुन की लाज रही
घरू जरि कयि बण्टाधारू भवा,
तब का जानिनि हम को आहिन॥

शब्दार्थ
<references/>