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दर्शन का रंग / सविता सिंह
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अप्रिय किसी घटना की तरह
आए थे वे सारे विचार जो कहते थे
समाप्त हुआ तुम्हारा दीप्त रास्ता यहाँ
आगे अंधेरा है
पथरीले तपते मैदान हैं
कोहरे में डूबे एक-दो मकान हैं
और अनगिनत रास्ते खोते जाते हुए
इन्हें ही बनाना है तुम्हें अब
अपने संसार की सच्चाई
मुझे भी मालूम था
कि यह संसार ही वह मैदान है
जहाँ खेलते हैं प्रकाश और अंधकार अपने क्रूरतम खेल
कि अंधेरा भी एक रंग है दर्शन का